वही आवाज़ फिर गूंजी
हिले पत्ते , उडे पंछी
फजा में हर तरफ़ फ़ैली है फिर से
खून और बारूद की मिलती हुई बू
हमें फिर से सुनाई दे रही है
इन फजाओं में
वही आहें
और उन की बाज़ गश्त
वही मासूम बच्चों की अधूरी सिसकिया
वही मंज़र है फिर जैर -ऐ -नज़र जिस में
नज़र की हद तलक फैले हुए हैं
चंद नखरे गुनाहों की सज़ा पाए हुए
मासूम इंसानों के जिस्मों के वोही टुकड़े
जो इस से कबल भी देखे थे हम ने
हाँ अभी बस चंद दिन पहले
ये आखिर हो रहा है किया
हमारे घर के अंदर
किस तरह ये आग आ पहुँची
ये कैसा खेल है जिस में
हमेशा उस को मिलती है सज़ा -ऐ - मौत
जो इस खेल का हिस्सा नहीं बनता
वह लड़का जो सुबह के वक़्त अपने घर से निकला था
हसूल -ऐ -रिज्क की खातिर
मगर वापिस नहीं लौटा
ज़रा देखो तो उस की माँ खड़ी है
रो रही है हॉस्पिटल में
अभी कुछ देर में
कुछ लोग आ कर उस के बेटे की
अधूरी लाश के टुकडे उसी को सोंप जायेंगे गे
घरी भर का धमाका
किस कदर लोगों की सादी ज़िन्दगी तब्दील कर देता है
कोई जनता न था
वोह देखो एक बच्चा भी यहीं है
किस कदर सहमा हुआ है
अपनी माँ के साथ बेठा है
समझता है अभी कुछ देर में पापा यहाँ आ कर
उससे घर ले के जायें गे
उससे अब कौन समझाए
के जो ऐसे चला जाए कभी वापिस नहीं आता
हमें अब रोकना होगा तमाम ऐसे मनाज़िर को
तमाम ऐसे अनासिर को
जो इन सरगर्मिओं में हैं मुलव्विश
रोकना होगा सभी ऐसे अनासिर को जो दर पे है
हमारे मुल्क -ओ -मिल्लत का ये शिराज़ा बिखर जाए
इन्हें अब रोकना भी इक तरह का क़र्ज़ है हम पे
जेहाद अब फ़र्ज़ है हम पे
जेहाद अब फ़र्ज़ है हम पे
हिले पत्ते , उडे पंछी
फजा में हर तरफ़ फ़ैली है फिर से
खून और बारूद की मिलती हुई बू
हमें फिर से सुनाई दे रही है
इन फजाओं में
वही आहें
और उन की बाज़ गश्त
वही मासूम बच्चों की अधूरी सिसकिया
वही मंज़र है फिर जैर -ऐ -नज़र जिस में
नज़र की हद तलक फैले हुए हैं
चंद नखरे गुनाहों की सज़ा पाए हुए
मासूम इंसानों के जिस्मों के वोही टुकड़े
जो इस से कबल भी देखे थे हम ने
हाँ अभी बस चंद दिन पहले
ये आखिर हो रहा है किया
हमारे घर के अंदर
किस तरह ये आग आ पहुँची
ये कैसा खेल है जिस में
हमेशा उस को मिलती है सज़ा -ऐ - मौत
जो इस खेल का हिस्सा नहीं बनता
वह लड़का जो सुबह के वक़्त अपने घर से निकला था
हसूल -ऐ -रिज्क की खातिर
मगर वापिस नहीं लौटा
ज़रा देखो तो उस की माँ खड़ी है
रो रही है हॉस्पिटल में
अभी कुछ देर में
कुछ लोग आ कर उस के बेटे की
अधूरी लाश के टुकडे उसी को सोंप जायेंगे गे
घरी भर का धमाका
किस कदर लोगों की सादी ज़िन्दगी तब्दील कर देता है
कोई जनता न था
वोह देखो एक बच्चा भी यहीं है
किस कदर सहमा हुआ है
अपनी माँ के साथ बेठा है
समझता है अभी कुछ देर में पापा यहाँ आ कर
उससे घर ले के जायें गे
उससे अब कौन समझाए
के जो ऐसे चला जाए कभी वापिस नहीं आता
हमें अब रोकना होगा तमाम ऐसे मनाज़िर को
तमाम ऐसे अनासिर को
जो इन सरगर्मिओं में हैं मुलव्विश
रोकना होगा सभी ऐसे अनासिर को जो दर पे है
हमारे मुल्क -ओ -मिल्लत का ये शिराज़ा बिखर जाए
इन्हें अब रोकना भी इक तरह का क़र्ज़ है हम पे
जेहाद अब फ़र्ज़ है हम पे
जेहाद अब फ़र्ज़ है हम पे
1 comment:
जेहाद अब फ़र्ज़ है हम पे
जेहाद अब फ़र्ज़ है हम पे
waaah! v.v.well written. keep it up.
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