Sunday, August 2, 2009

ऐसे हालत में ..... (ग़ज़ल)

उसकी हस्ती मैं उतर जाने को जी चाहता है

काम मुश्किल सही कर जाने को जी चाहता है

शोक - -आवारगी इतना है के अब बन के लहू

उसकी रग रग से गुज़र जाने को जी चाहता है

पत्थरों के यही अंजाम हुआ करते हैं

टूट के आज बिखर जाने को जी चाहता है

तख्ता - -दार पे हम महव - -तमाशा दुनिया

मुनफ़रिद सब से नज़र आने को जी चाहता है

लैब पे मुस्कान हो और दिल में हो महशर बरपा

ऐसे हालत में मर जाने को जी चाहता है

जिस जगह जा के कोई लोट के फिर आता नहीं

जाने कियों आज उधर जाने को जी चाहता है

आज तन मन को जलती है हवा भी शाहीन,

आज मट्टी में उतर जाने को जी चाहता है

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